आरटीआई के तहत जानकारी न देने पर किन किन धाराओं पर लोक सूचना अधिकारियों पर दर्ज कराएं एफ आई आर

आरटीआई के तहत जानकारी न देने पर किन किन धाराओं पर लोक सूचना अधिकारियों पर दर्ज कराएं  एफ आई आर

क्या आपने कभी सूचना का अधिकार कानून के आगे भी निकलकर विचार किया है? यदि आपको आरटीई फाइल करने के बाद भी जानकारी समय सीमा पर न मिले या कोई जानकारी ही न मिले या अधूरी और भ्रामक जानकारी मिले या जो जानकारी दी गई हो वह झूंठी और गलत हो, तो आप क्या करेंगे? क्या आपने प्रथम अपील और द्वितीय अपील से आगे भी सोचा है? क्या आपने सोचा है कि, आरटीआई के साथ-साथ आप भारतीय दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता के तहत भी कार्यवाही की मांग कर सकते हैं तथा जानकारी न देने और गलत भ्रामक जानकारी देने आरटीआई कानून का उल्लंघन करने के लिए लोक सूचना अधिकारी और प्रथम अपीलीय अधिकारी के उपर एफ आई आर भी दर्ज करवा सकते हैं. 

 

लोक सूचना अधिकारी द्वारा कोई जवाब नहीं देना आरटीआई एक्ट धारा 7(2) का उल्लंघन है. 

लोक सूचना अधिकारी द्वारा आरटीआई एक्ट की धारा 7(8) का उल्लंघन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 166ए और

 167 के तहत एफआईआर कराई जा सकती है. 

लोक सूचना अधिकारी द्वारा झूठी जानकारी देने पर, प्रमाण आवेदक के पास मौजूद है, उस स्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 166ए, 167, 420, 468 और 471 के तहत एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है.

प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा निर्णय नहीं किये जाने की स्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 166ए, 188 के तहत एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है. 

प्रथम अपीलीय अधिकारी के समक्ष लोक सूचना अधिकारी द्वारा सुनवाई के बाद सम्यक सूचना के भी गैर हाजिर रहने की स्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 175, 176, 188, और 420 के तहत एफआईआर दर्ज करवाई जा सकती है.

प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा निर्णय करने के बाद भी सूचनाएं नहीं देने की स्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 188 और 420 के तहत एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है. 

लोक सूचना अधिकारी अथवा प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा आवेदक को धमकाने की स्थिति में आईपीसी की धारा 506 के तहत एफआईआर दर्ज करने का प्रावधान है. 

लोक सूचना अधिकारी द्वारा शुल्क लेकर भी सूचना नहीं देने की स्थिति में आईपीसी की धारा 406 और 420 के तहत एफआईआर दर्ज किये जाने का प्रावधान लागू होगा. 

लोक सूचना अधिकारी अथवा प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा लिखित में ऐसे कथन केहना जिसका झूठ होना, लोक सूचना अधिकारी अथवा प्रथम अपीलीय अधिकारी को ज्ञात हो और इससे आवेदक को सदोष हानि हो, उस स्थिति में आईपीसी की धारा 193, 420, 468 और 471 के तहत एफआईआर दर्ज करवाई जा सकती है. 

भारतीय दंड संहिता की धारा 166ए -- भारतीय दंड संहिता  की धारा 166A — लोक सेवक, जो विधि के अधीन के निदेश की अवज्ञा करता है – वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किन्तु जो दो वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया। जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा

भारतीय दंड संहिता की धारा 175-- भारतीय दंड संहिता  की धारा 175 के अनुसार, जो कोई किसी लोक सेवक को, ऐसे लोक-सेवक के नाते किसी दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख को पेश करने या परिदत्त करने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, उसको इस प्रकार पेश करने या परिदत्त करने का साशय लोप यानी चूक करेगा, तो वह अपराधी माना जाएगा.

भारतीय दंड संहिता की धारा 176 -- भारतीय दंड संहिता  की धारा 176 के अनुसार, जो कोई किसी लोक सेवक को, ऐसे लोक सेवक के नाते किसी विषय पर कोई सूचना देने या इत्तिला देने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, विधि द्वारा अपेक्षित प्रकार से और समय पर ऐसी सूचना या इत्तिला देने का साशय लोप करेगा, वह अपराधी के तौर पर सजा का हकदार होगा.

भारतीय दंड संहिता की धारा 188- दरअसल, भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 188 (Section 188) के अनुसार, अगर कोई शख्स लॉक डाउन या उसके दौरान सरकार के निर्देशों का उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 188 के तहत कानूनी कार्रवाई किए जाने का प्रावधान है.-

भारतीय दंड संहिता की धारा 193-- भारतीय दंड संहिता  की धारा 193 के अनुसार, न्यायिक कार्यवाही में मिथ्या साक्ष्य प्रविष्ट करने वाले व्यक्ति को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 193 में दंड का प्रावधान किया गया है. इस संबंध में कोई व्यक्ति किसी के दस्तावेज अथवा इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखो में छेड़छाड़ करता है तो वह धारा 193 के तहत अपराधी माना जाएगा.

भारतीय दंड संहिता की धारा 406 --भारतीय दंड संहिता की धारा 406 आपराधिक न्यास भंग के लिए सजा प्रदान करती है। इसमें कहा गया है कि आपराधिक न्यास भंग के अपराधों के लिए 3 साल तक की सजा और जुर्माना दोनों हो सकती है। संपत्ति का दुरुपयोग. संपत्ति उस व्यक्ति को सौंपी जानी चाहिए जिसके खिलाफ आरोप लगाए जा रहे हैं.

भारतीय दंड संहिता की धारा 420--कानूनी नजरिए से धारा 420 के बारे में बताया गया है कि अगर कोई व्यक्ति किसी के साथ धोखा करता है, छल करता है, बेईमानी से किसी की बहुमूल्य वस्तु या संपत्ति में परिवर्तन करता है, उसे नष्ट करता है या ऐसा करने में किसी की मदद भी करता है तो उसके खिलाफ धारा 420 लगाई जा सकती है.

भारतीय दंड संहिता की धारा 468 -- भारतीय दंड संहिता की धारा 468 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति इस आशय से कूटरचना करता है कि कूटरचित दस्तावेज़ों को छल करने के लिए इस्तेमाल किया जा सके तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और साथ ही वह आर्थिक दंड के लिए भी उत्तरदायी होगा।

भारतीय दंड संहिता की धारा 471-- भारतीय दंड संहिता की धारा 471 के अनुसार, जो कोई किसी दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख, जिसके बारे में वह जानता या विश्वास करने का कारण रखता हो कि वह दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख कूटरचित है, को कपटपूर्वक या बेईमानी से असली के रूप में उपयोग करता है, तो उसे उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानो उसने ही उन दस्तावेज़ो या ...

भारतीय दंड संहिता की धारा 506 -- आईपीसी, 1860 की धारा 506 का विवरण आईपीसी, 1860 की धारा 506 के पहले भाग में कहा गया है कि जब कोई व्यक्ति आपराधिक धमकी के अपराध का दोषी होता है तो उसे कारावास जिसे दो साल तक बढ़ाया जा सकता है की या जुर्माना या दोनों जुर्माने और अपराध के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा।