बच्चों के साथ होते अपराध और उनकी सजा
बच्चों के साथ होते अपराध और उनकी सजा"
नैशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो के हालिया रिपोर्ट में देशभर के बच्चों के खिलाफ होने वाले गंभीर अपराध के बारे में जो आंकड़ा दिया गया है, वह चिंताजनक है। आंकड़ों के मुताबिक राजधानी दिल्ली में पिछले साल 304 बच्चों के साथ बलात्कार की घटना हुई। इसी तरह अन्य अपराध के भी आंकड़े हैं। हालांकि इन अपराधों के अलावा बच्चों के साथ कई तरह से बदसलूकी की बातें भी सामने आती रही हैं। ऐसे में यह जनना जरूरी है कि बच्चों के प्रोटेक्शन के लिए कानून में क्या-क्या प्रावधान किए गए हैं।
बच्चों व नाबालिगों के साथ होने वाले सेक्शुअल हरासमेंट और अन्य तरह की प्रताड़नाओं से जुड़ी खबरें आए दिन देखने को मिलती हैं। इनमें रेप, अप्राकृतिक दुराचार, छेड़छाड़ व अन्य तरह की अश्लील हरकतें शामिल हैं। जानकार बताते हैं कि कई बार बच्चे संकोच के कारण अपने साथ होने वाले इस तरह की प्रताड़नाओं का जिक्र तक नहीं करते। कई मामले ऐसे भी देखने को मिलते हैं कि आरोपी सगा-संबंधी होता है।
कानूनी जानकारों के मुताबिक 18 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ अगर उसकी सहमति से भी कोई संबंध बनाता है तो भी वह अपराध है क्योंकि नाबालिग की सहमति का कानूनी तौर पर कोई मतलब नहीं होता। अगर ऐसे बच्चों के पैरंट्स को किसी भी स्टेज पर पता चले कि उनके बच्चे के साथ गलत हुआ है तो उन्हें इस बारे में पुलिस को सूचना देनी चाहिए। ऐसे आरोपी के खिलाफ बच्चे का बयान अहम होता है। बच्चों के साथ इस तरह की प्रताड़ना को रोकने के लिए जागरूकता भी जरूरी है।
टीचर प्रताड़ित करें तो
राइट टू एजुकेशन ऐक्ट में इसके बारे में जिक्र किया गया है। हालांकि इसके लिए कोई विशेष पैनल प्रविजन नहीं है। दिल्ली हाई कोर्ट के जाने-माने वकील अशोक अग्रवाल बताते हैं कि राइट टू एजुकेशन ऐक्ट-17 के तहत यह प्रावधान किया गया है कि अगर कोई भी टीचर किसी स्टूडेंट को मानसिक अथवा शारीरिक तौर पर प्रताड़ित करता है तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। सविर्स रूल के हिसाब से ऐसे दोषी टीचर के खिलाफ मिस कंडक्ट के लिए कार्रवाई की जा सकती है।
चाइल्ड लेबर
चाइल्ड लेबर रोकने को लेकर अदालत कई बार निर्देश जारी कर चुकी है। चाइल्ड लेबर करवाने वालों को सख्त सजा दिए जाने का प्रावधान भी है। लेकिन चाइल्ड लेबर इसके बावजूद थमा नहीं है। वकील भुवन रिभु के मुताबिक 18 साल से कम उम्र के बच्चों से खतरनाक उद्योगों में काम कराया जाना अपराध है। ऐसी स्थिति में 3 साल तक कैद की सजा का प्रावधान किया गया है। वहीं कानून में कई दूसरी तरह की बातों का जिक्र किया गया है। मसलन, अगर 14 साल से कम उम्र के बच्चों से ये काम लिए जाते हैं तो वह चाइल्ड लेबर ऐक्ट के तहत जुर्म है। 14 साल के कम उम्र के बच्चों से अन्य कामों के अलावा घरेलू काम करवाना भी कानूनी जुर्म है और इसके लिए दोषी पाए जाने पर 1 साल तक कैद और 10 हजार से 20 हजार रुपये तक जुर्माने का प्रावधान है।
जुवेनाइल जस्टिस ऐक्ट
कानूनी जानकार एम. एस. खान के मुताबिक आपराधिक मामला बनने पर अगर किसी की उम्र 18 साल से कम पाई जाती है तो उसे बच्चा ही माना जाएगा। आरोपी 18 साल से कम है तो उसकी पहचान गुप्त भी रखी जाती है। साथ ही उसका मामला जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को रेफर किया जाता है। इसके पीछे मकसद यह है कि जुवेनाइल को सुधारा जाए। यही कारण है कि उसे सुधार गृह में भेजा जाता है, जहां सजा देने की बजाए जुवेनाइल को सुधारने पर जोर दिया जाता है।
जुवेनाइल को आमतौर पर जमानत दिए जाने का प्रावधान है। जुवेनाइल के खिलाफ हत्या या ऐसे किसी भी संगीन आरोप ही क्यों न साबित हो जाएं, उसे 18 साल तक की उम्र तक ही सुधार गृह में रखा जाता है। सरकारी वकील नवीन शर्मा के मुताबिक जुवेनाइल जस्टिस ऐक्ट इसलिए बनाया गया है ताकि बच्चों को सही राह दिखाई जा सके।
जूवनाइल जस्टिस ऐक्ट-23 में यह प्रावधान किया गया है कि अगर बच्चा कस्टडी में है और उस कस्टडी में बच्चे को मानसिक अथवा शारीरिक तौर पर प्रताड़ित किया जाता है तो इसके लिए दोषी पाए जाने पर ऐसे लोगों के खिलाफ 6 महीने तक कैद अथवा जुर्माने की सजा दी जाएगी।